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जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है

जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है हर साल जलाते रावण जैसे खुद ही स्वामी राम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || रावण से ब्याते बेटी,  पूजते सियावर राम है | प्रेम से वंचित पल-पल  रोते राधा घनश्याम है | ऊच-नीच ने जात-पात ने मचा रखा कोहराम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || है आज भी रावण जिन्दा , शर्मिंदा श्री राम है | है बाबा में भी राक्षस बसता , बस नाम में ही राम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || -अनूपम 

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल  एक ग़ज़ल  लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि इनमें छुपा है प्यार बस मेरे  लिए बस मेरे लिए ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि पहलु में तेरे बैठ के, तेरी झुल्फों से यूँ खेल के |  बस दिल में लिखता रहा, तुझे सोचते बस तुझे सोचते ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि शाम भी अब ढल गई , तेरे पहलु में सिमट गई |  कि चाँदनी भी अब तेरे हुस्न से पिघल गई ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  गीतों को लिखता रहा , तुझमें ही मै जीता रहु |  कि मेरी धड़कन भी तेरी धड़कनों से जुड़ गई ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  अल्फ़ाज़ भी मेरे नहीं , ये गीत भी मेरा नहीं |  बस तूने जो ना कहा लिख दिया तुझे सोच के तुझे सोच के ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि वक़्त भी अब थम गया , जो तूने वो कह दिया |  कि ए मेरे हमसफ़र ये दिल भी है तेरे लिए बस तेरे लि...