Posts

मै महादेव

मै सूर्य का तेज हूँ, चंद्र का प्रकाश मै, ना ढूंढ मुझे तू मूरख, हूँ सम्पूर्ण कैलाश मै, प्राणी का आरंभ मै, उसका ही हूँ अंत मै, प्रलय की शुरुवात मै, प्रलय का आघात मै, देवताओं का आराध्य हूँ, दैत्यों का हूँ पूज्य मै, जीव मै, मृत मै, शमशान मै और कंकाल भी मै, अग्नि मै, नीर मै, समुद्र से निकला विष भी मै, आनंद मै, उल्लास मै, दुःख भी मै और विलास भी मै, स्वर्ग मै और नर्क मै, भूतल भी मै, पाताल भी मै, महाकाल मै, महाराज मै, इंद्र हूँ तो यमराज भी मै, दुर्गा मै, काली मै, खड्ग भी मै और खप्पर वाली  भी मै, नर भी मै, नारायण मै, गीता मै तो रामायण भी मै, अस्त्र भी मै और शस्त्र भी मै, अर्जुन का गांडीव मै और कृष्ण का चक्र भी मै पवन भी मै और पवनपुत्र भी मै, राम भी मै और राम का दास भी मै आकर मै, निराकार मै, कर्म मै तो साकार भी मै, असुर मै और देव भी मै, वैरागी मै और महादेव भी मै ||           - अनुपम   

सांवरिया

सांवरिया ज़िंदगी की  कश्मकश का हूँ एक क़िरदार सांवरिया ना  हूँ  राधा , ना  मीरा, बनू दीपक सांवरिया जला दे लौह अंतर्मन में तेरी भक्ति की रुक्मणी नहीं , बन सुदामा तेरे साथ रहू मै सांवरिया बन द्वारपाल द्वारका का पहरा दू मै सांवरिया पार लगाओ नैय्या मेरी बन केवट मेरे सांवरिया लड़ू संसार  से तेरी भक्ति के लिए, जीत जाऊ जग अगर तुम मेरे साथ होसांवरिया|                                                - दीपक काकड़ा 

दो शब्द

बुरे हमे सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे हालात करते है जाने अन्जाने में ही सही वो आज भी हमारी बात करते है एक अर्से पहले इस नाम से घिन थी उनको आज बैठ कर रावण नाम का जाप करते है || ======================================================================== रावण के अस्तित्व का एक ये ही प्रमाण है जो एक बार मर जाता है उसे बार -बार  जलाते नहीं है तुम क्या सोचते हो घमंड चला गया , अभिमान टूट गया , बुराई हार गयी रावण कल भी यहीं था और आज भी यहीं हैं || ======================================================================== मोहब्बत रहमान किसी की तो कुछ भगवन लिखते है मिटा हस्ती अपने इश्क़ को पहचान लिखते है मग़र हम तलवारो के बेटे उन मस्तानो की टोली जो बहाकर ख़ून अपना सरहद पर हिंदुस्तान लिखते है ||                                                                  - अप्रूव विक्रम शाह ==========================================...

मैं तो रावण ही ठीक हूँ

मैं तो रावण ही ठीक हूँ कुछ के लिए बुरा तो कुछ के लिए ताक़त और क्षमता  हूँ | हाँ मै वही रावण हूँ जो आज़ भी अपनी बहन की सुनता हूँ || अपने झूठे स्वाभीमान का अभीमान लोग सतयुग से करते आ रहे है औरतों कि इज़्ज़त उतारने वाले आज खड़े होकर मेरे पुतले जला रहे है पुतला जलने से क्या होगा , हर तरफ़ सिर्फ़ आग और धुआँ होगा अपने गिरेबां में झांकर देख तू ये गुरुरी रावण तझसे अच्छा कही गुना होगा ना मै मरा था ना ही  मै हारा था मझे मेरे विश्वास और मेरे ही  भरोसें ने मारा था हाँ की ग़लती  मैने  एक औरत की इज़्ज़त के लिए दूसरी को उठा लाया था पर उस राम ने सीता को गीता सा साफ़ और कुरान सा पवित्र पाया था तो क्यों सतयुग से लेकर कलयुग तक आज भी सीता अग्नी परीक्षा से गुज़रतीं है कभी अपनों में तो कभी परायो में अपनी पवित्रता साबित करती है हाँ मै वही रावण हूँ जिसको आयोध्या के राजा राम ने हराया था और जिसके लिए हराया था उसे खुद भी अपने पास नहीं रख पाया था हाँ तो ठीक है मै घमंडी , मैं पापी मै ताक़त का प्रतीक हूँ हाँ मैं वही दशानन ज़िद्दी हु और थोड़ा सा ढ़ीट हूँ इस कलयुग के सतयुग में तुम सब राम...

जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है

जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है हर साल जलाते रावण जैसे खुद ही स्वामी राम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || रावण से ब्याते बेटी,  पूजते सियावर राम है | प्रेम से वंचित पल-पल  रोते राधा घनश्याम है | ऊच-नीच ने जात-पात ने मचा रखा कोहराम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || है आज भी रावण जिन्दा , शर्मिंदा श्री राम है | है बाबा में भी राक्षस बसता , बस नाम में ही राम है | जितने ऊचे लोग यहां पर उतने नीचे काम है || -अनूपम 

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल  एक ग़ज़ल  लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि इनमें छुपा है प्यार बस मेरे  लिए बस मेरे लिए ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि पहलु में तेरे बैठ के, तेरी झुल्फों से यूँ खेल के |  बस दिल में लिखता रहा, तुझे सोचते बस तुझे सोचते ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि शाम भी अब ढल गई , तेरे पहलु में सिमट गई |  कि चाँदनी भी अब तेरे हुस्न से पिघल गई ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  गीतों को लिखता रहा , तुझमें ही मै जीता रहु |  कि मेरी धड़कन भी तेरी धड़कनों से जुड़ गई ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  अल्फ़ाज़ भी मेरे नहीं , ये गीत भी मेरा नहीं |  बस तूने जो ना कहा लिख दिया तुझे सोच के तुझे सोच के ||  एक ग़ज़ल लिखी तेरे पहलु में तेरी आँखों को यूँ देख कर |  कि वक़्त भी अब थम गया , जो तूने वो कह दिया |  कि ए मेरे हमसफ़र ये दिल भी है तेरे लिए बस तेरे लि...

राख से तालीम लेकर

राख  से  तालीम लेकर राख  से  तालीम लेकर आग बनने चल पड़े , वो देख कर इंसान को इंसान से ही लड़ पड़े , धर्म जाति की चक्की में इंसानियत पिस्ती रही , कुछ मासूम आँखों से मासूमियत रिस्ति रही , शेर कुत्ते बन गए थे भीड़ की उस आड़ में , सारी प्यासे  गई थी ख़ून की उस बाढ़ में , नंगी हुई तलवार से नंगी कर दी थी बेटियाँ , माँस के उन लोथड़ों से भरदी ख़ाली पेटियां , आग उतारी चूल्हों से और घर के घर जला दिए , इंसान की तलाश में इंसान ही जला दिए | गोलियों के शोर में लोरियाँ घबरा गई , मौत की गोद में बच्चों को नींद आ गई , माँ के उस आँचल को भी रंग दिए वो लाल में , ऐसे दरिन्दो की भीड़ थी इंसानियत की खाल में , ना पूछे मेरे धर्म को ना पूछे मेरी जात को , बस एक ही अलगार थी की सर को मेरे काट दो , मेरे ही बहते ख़ून से मेरी ही मिट्टी लाल थी , मेरे ही पाप की चीखों से मेरी ही माँ बेहाल थीं , हाथ में तलवार लेकर में भी उनमे था खड़ा , मेरी ही माँ का सिर कटा और मेरे ही पैरों में आ गिरा , चीथड़े कितने हुए मै हाथ पर गिनता रहा , मेरे ही घर की अस्थियाँ मै भीड़ से बिन्ता रहा | राख  से...